
कर्मों का काला पानी
महाकुंभ 2025 का पावन अवसर चल रहा है। श्रद्धालु बड़ी संख्या में प्रयागराज के त्रिवेणी संगम में स्नान कर अपने पापों से मुक्ति पाने की कामना कर रहे हैं। ऐसा माना जाता है कि संगम में स्नान करने से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। लेकिन क्या केवल संगम में डुबकी लगाने से ही हमारे कर्मों का हिसाब समाप्त हो जाता है? यह एक गहरा प्रश्न है जिस पर विचार करना आवश्यक है।
स्नान और श्रद्धा
गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम पुण्यभूमि माना जाता है, यह स्थान केवल एक भौतिक स्थल नहीं बल्कि आस्था और विश्वास का केंद्र है। किंतु क्या संगम स्नान मात्र से ही हमारे सभी दुष्कर्म समाप्त हो सकते हैं? यदि ऐसा होता तो दुनिया में कोई बुरा कार्य ही न करता।
कर्मों की गहराई
भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है:
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।”
अर्थात, मनुष्य को केवल अपने कर्म करने का अधिकार है, लेकिन उसके फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। जब हम अच्छे कर्म करते हैं, तो उसका फल हमें अच्छा मिलता है, और जब हम बुरे कर्म करते हैं, तो उसका परिणाम भी वैसा ही होता है। यह एक दिव्य नियम है जिससे कोई बच नहीं सकता।
स्वर्ग और नर्क का वास्तविक स्वरूप
बहुत से लोग मानते हैं कि स्वर्ग और नर्क मृत्यु के बाद मिलते हैं, लेकिन वास्तव में यह यहीं हमारे जीवन में ही हैं। जब हम अच्छे कर्म करते हैं, तो हमारा जीवन सुखद और आनंदमयी बनता है। वहीं, जब हम गलत कर्मों में लिप्त होते हैं, तो जीवन संघर्षमय और कष्टकारी हो जाता है। इसलिए स्वर्ग और नर्क हमारी इसी दुनिया में ही मौजूद हैं।
भगवान कर्मों का हिसाब रखते हैं।
हमारी हर छोटी-बड़ी क्रिया का हिसाब भगवान रखते हैं। जैसे बैंक में जमा किए गए पैसे ब्याज के साथ लौटते हैं, वैसे ही हमारे कर्मों का हिसाब भी समय के साथ हमारे जीवन में लौटता है। जब हमारे अच्छे और बुरे कर्मों का संतुलन बिगड़ जाता है, तब हमें अगले जन्म में उनके परिणाम भुगतने पड़ते हैं। इसे ही भाग्य कहते हैं।
सच्चा मोक्ष क्या है?
अगर कोई व्यक्ति यह सोचता है कि संगम में स्नान करने मात्र से उसके पाप मिट जाएंगे, तो यह भ्रम है। गीता में स्पष्ट कहा गया है कि मनुष्य को सच्चा मोक्ष तब मिलता है जब वह सत्कर्म करता है, ईश्वर का ध्यान करता है और दूसरों के भले के लिए कार्य करता है।
काव्य: कर्मों का काला पानी
संगम में डुबकी लगाकर, पाप हर कोई धोने आया।
पर क्या कोई समझ सका, कर्मों का लेखा कौन मिटाया||
सिर्फ नहाने से पाप न धुलते, यह तो है मन का एक बहाना।
अच्छे कर्मों की राह पकड़ ले, यही है गीता का असली गाना||
जो जैसा करेगा वैसा भरेगा, यही है सृष्टि का अटल नियम।
फिर क्यों सोचें जल की बूंदें, हर लेंगी जीवन का भ्रम||
मेरे व्यक्तिगत विचार हैं कि पवित्र जल में स्नान करने या पवित्र स्थलों पर जाने से हमेशा सकारात्मकता ही मिलती है। इससे मन को एक नई दृष्टि मिलती है और अच्छे कर्म करने की प्रेरणा मिलती है। इसलिए, इन स्थलों पर अवश्य जाना चाहिए। यह आस्था का विषय है और इसे अंधविश्वास में नहीं बदलना चाहिए।
निष्कर्ष
संगम में स्नान करना, त्रिवेणी में आस्था रखना एक शुभ कार्य है, लेकिन केवल जल में डुबकी लगाकर पापों से मुक्ति की आशा रखना उचित नहीं है। असली मोक्ष तब प्राप्त होता है जब हम अपने विचारों और कर्मों को शुद्ध करें। अच्छे कर्म करें, दूसरों की सहायता करें, सत्य के मार्ग पर चलें और अपने जीवन को धर्म के अनुसार व्यतीत करें। यही सच्ची भक्ति और ईश्वर के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धा होगी।
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