
“सास-बहू का रिश्ता: तकरार से प्यार तक की प्रेरणादायक कहानी”
गाँव की संकरी गलियों में एक घर था, जहाँ सास गीता देवी और बहू कविता साथ रहती थीं। गीता देवी पुराने जमाने की सख्त महिला थीं, जिनकी परवरिश परंपरागत रीति-रिवाजों में हुई थी। वहीं, कविता पढ़ी-लिखी, आत्मनिर्भर और नए जमाने की सोच रखने वाली थी। शादी के बाद से ही दोनों के बीच छोटी-छोटी बातों पर बहस होती रहती थी। कभी रसोई के काम को लेकर तो कभी घर के फैसलों पर, उनकी सोच में हमेशा टकराव बना रहता।
संघर्ष की शुरुआत
कविता को लगता कि गीता देवी उसे अपनी बहू नहीं, एक नौकरानी समझती हैं, और गीता देवी को लगता कि उनकी बहू घर के संस्कारों को नहीं मानती। दोनों के बीच अक्सर तकरार हो जाती, जिससे घर का माहौल तनावपूर्ण रहने लगा। कविता कई बार अपने पति से कहती, “मुझे यह घर छोड़कर चले जाना चाहिए, मैं अब सहन नहीं कर सकती।” लेकिन फिर माँ की सीख याद आ जाती, “रिश्ते निभाने पड़ते हैं, सिर्फ निभाने का तरीका बदलना पड़ता है।”
समझदारी का पहला कदम
एक दिन गीता देवी अचानक सीढ़ियों से गिर पड़ीं और उनका पैर बुरी तरह घायल हो गया। घर में कोई नहीं था, बस कविता थी। बिना कुछ सोचे-समझे, कविता ने तुरंत उन्हें उठाया, दवा लगाई, और डॉक्टर के पास ले गई। गीता देवी के लिए यह चौंकाने वाला था कि उनकी वही बहू, जिससे वे रोज़ लड़ती थीं, उनकी इतनी चिंता कर रही थी।
वहीं, कविता को भी एहसास हुआ कि सास को उसकी जरूरत थी, लेकिन वे बस अपने प्यार को सख्ती के पर्दे में छुपाकर रखती थीं। उस दिन के बाद से कविता ने गीता देवी के साथ समय बिताना शुरू किया, उनकी पसंद-नापसंद जानने लगी। धीरे-धीरे, गीता देवी भी पिघलने लगीं और बहू के प्रति उनका रवैया बदलने लगा।
अटूट रिश्ता
समय बीतता गया और अब दोनों एक-दूसरे के बिना एक दिन भी नहीं रह सकती थीं। जब कविता बीमार होती, तो गीता देवी उसकी देखभाल बिल्कुल अपनी बेटी की तरह करतीं। जब गीता देवी की पुरानी सहेलियाँ उनसे पूछतीं, “अब तुम्हारी बहू से लड़ाई नहीं होती?” तो वे मुस्कुराकर कहतीं, “अब मेरी बहू ही मेरी सबसे अच्छी दोस्त है।”
कविता भी अब हर फैसले में अपनी सास की राय लेती और उनके अनुभव से सीखने लगी। वे दोनों माँ-बेटी की तरह हो गईं। कभी-कभी बहस होती, लेकिन अब प्यार और समझदारी ने रिश्ते की नींव को इतना मजबूत कर दिया था कि वे दोनों एक-दूसरे के बिना अधूरी थीं।
सीख:
रिश्तों में मनमुटाव होना स्वाभाविक है, लेकिन प्यार, समझदारी और धैर्य से हर दीवार को गिराया जा सकता है। सास-बहू का रिश्ता सिर्फ संघर्ष का नहीं, बल्कि एक अनमोल बंधन का भी होता है, जो समय के साथ और भी गहरा हो जाता है।
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